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एक रोटी रोज़

हिन्दू धर्म में गाय को देवी माँ का दर्ज़ा दिया जाता है | गाय में 33 कोटि के देवी . देवता निवास करते हैं |

हिन्दू धर्म में मान्यता हैं की घर में पहली रोटी गाय की बननी चाहिये और उसे खिलाने के बाद ही अन्य सदस्यों को खाना चाहिये | जो लोग गाय को नियमित रूप से रोटी खिलाते हैं और गाय की सेवा करते हैं| उनकी कई पीढ़ियों पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी लोग उन्नति और खूब तरक्की करते हैं |

अप्रैल 2019 से यह एक अनूठे प्रयोग की शुरुआत थीए जब स्थापना हुई ” एक रोटी गौ माता के नाम ” संस्था की| संस्था ने गौ माता तक रोटी पहुंचाने का संकल्प लिया एवं उसके लिए 10,000 रोटी प्रतिदिन बनाने की आधुनिक एवं ऑटोमेटिक मशीन मंगवाई |

आज ” एक रोटी गौ माता के नाम “ संस्था से, सम्पूर्ण भारत के सैकड़ो गौभक्त जुड़े हुए हैं| जो इस संस्था के माध्यम से संकल्प विधि द्वारा प्रतिदिन गौमाता के निमित एक रोटी निकाल कर पुण्य लाभ कमा रहे हैं |

बिना किसी प्रतिलाभ की आशा के, इस संस्था के गौसेवक पिछले 3 वर्षो से इस कार्य का निष्पादन कर रहे हैं और निरंतर इस कार्य को आगे ले जा रहे हैं | प्रतिदिन रोटियों के वितरण सम्बंधित जानकारिया विविध माध्यमों से नियमित रूप से गौभक्तो तक पहुंचाई जा रही हैं |

हिन्दू धर्म में अनादि काल से घर की पहली रोटी गौ माता के नाम से निकालने की परंपरा चली आ रही हैं,

आज भी बहुत से लोग इसका पालन करते हैं पर अधिकांश लोग चाहते हुए भी समय अभाव के कारण इसका पालन नहीं कर पाते और इसके चलते अनजाने में ही वो बहुत बड़े पुण्य का लाभ नहीं उठा पाते हैं |

एक रोटी गौ माता के नाम संस्था ने गहन अध्ययन के पश्चात यह पाया की सप्ताह के प्रत्येक दिन एक विशेष ग्रह और उस ग्रह का एक विशेष रंग और अन्न होता हैं और यदि उस विशेष दिन पर विशेष अन्न की रोटी अगर कोई गौमाता को खिलाता हैं तो उसके अद्भुत लाभ उस व्यक्ति को प्राप्त होते हैं जिसके कारण उसके आर्थिक मानसिक एवं पारिवारिक समस्याएं दूर हो जाती हैं |

इस कलयुग में हमारा जीवन ऑफिस / व्यापार में इतना व्यस्त हो गया हैं की एक बार घर से निकलने के बाद दिमाग में कोई भी चीज याद नहीं रहती एवं ऑफिस जाते हुए गौमाता के लिए रोटी लेकर भी निकले तो भागदौड़ में उसे खिलाना याद नहीं रहता हैं |

आज कल मॉर्डन युग में कॉलोनियों में गेट लग गए हैं एवं हर समय गौमाता के दर्शन नहीं हो पाते हैं ऐसे में गौमाता को ढूँढना और रोटी खिलाना अपने आप में किसी चुनौती से काम नहीं रह गया हैं और यदि गौ मिले भी तो देशी गौवंश का मिलना असंभव सा ही हैं